अचला सप्तमी: एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार


अचला सप्तमी, जिसे रथ सप्तमी, सूर्य जयंती या आरोग्य सप्तमी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह त्योहार सूर्य नारायण को समर्पित है और माघ महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन सूर्य नारायण की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और व्रत रखा जाता है। माना जाता है कि इस दिन सूर्य देव ने पूरे ब्रह्मांड को अपनी दिव्य ज्योति से प्रकाशित किया था। यह त्योहार न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि स्वास्थ्य, समृद्धि और आध्यात्मिक उत्थान के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है।
अचला सप्तमी का महत्व
अचला सप्तमी का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है, जिसके कई कारण हैं:
सूर्य देव का प्राकट्य: मान्यता है कि इस दिन सूर्य देव का जन्म हुआ था। इस दिन सूर्य देव अपने सात घोड़ों के रथ पर सवार होकर प्रकट हुए और पूरी सृष्टि को प्रकाशित किया।
आरोग्य का प्रतीक: इस दिन को आरोग्य सप्तमी के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि माना जाता है कि इस दिन सूर्य नारायण की पूजा करने और पवित्र नदियों में स्नान करने से सभी प्रकार के रोगों और दोषों से मुक्ति मिलती है।
पापों से मुक्ति: यह भी माना जाता है कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने और दान करने से सात जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है।
शुभ फल: इस दिन व्रत रखने और सूर्य नारायण की पूजा करने से सौभाग्य, सुख, समृद्धि, उत्तम संतान और यश की प्राप्ति होती है।
वर्ष की सर्वश्रेष्ठ सप्तमी: अचला सप्तमी को पूरे वर्ष की सप्तमी तिथियों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। यदि यह रविवार को पड़ती है, तो इसे भानु सप्तमी कहा जाता है।
अचला सप्तमी: 2025 में तिथि और मुहूर्त
- वर्ष 2025 में अचला सप्तमी 4 फरवरी, मंगलवार को मनाई जाएगी।
- सप्तमी तिथि का प्रारंभ: 4 फरवरी को सुबह 04:37 बजे
- सप्तमी तिथि का समापन: 5 फरवरी को सुबह 02:30 बजे
- स्नान मुहूर्त:
- सुबह 05:23 बजे से 07:08 बजे तक
- एक अन्य स्रोत के अनुसार: सुबह 04:56 बजे से 06:40 बजे तक
- सूर्योदय: सुबह 07:08 बजे
- पूजा का शुभ मुहूर्त: सुबह 05:48 बजे से 09:40 बजे तक।
अचला सप्तमी: पूजा विधि और अनुष्ठान
अचला सप्तमी के दिन कई प्रकार के अनुष्ठान किए जाते हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
- प्रातः स्नान: इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना चाहिए। यदि संभव हो, तो किसी पवित्र नदी या तीर्थ में स्नान करें। यदि यह संभव नहीं है, तो घर पर ही स्नान के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
- सूर्य नारायण को अर्घ्य: स्नान के बाद सूर्य नारायण को अर्घ्य देना चाहिए। तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें लाल चंदन, लाल फूल और गुड़ डालकर सूर्य नारायण को अर्पित करें। मंत्रों का जाप करते हुए सूर्य नारायण को जल अर्पित करें।
- सूर्य नारायण की पूजा: फूल, धूप, दीप, नैवेद्य और वस्त्र आदि से सूर्य नारायण की विधि-विधान पूर्वक पूजा करें। आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना शुभ माना जाता है।
- उपवास: इस दिन कई लोग उपवास रखते हैं। इस दिन नमक और तेल का सेवन नहीं करना चाहिए। कुछ लोग केवल फल खाते हैं, जबकि कुछ लोग निर्जल (बिना पानी पिए) व्रत रखते हैं।
- तिल के तेल का दीपक: इस दिन तांबे के दीपक में तिल का तेल डालकर जलाएं और इस दीपक को सिर पर रखकर सूर्य नारायण का ध्यान करें। ध्यान के बाद इस दीपक को नदी में प्रवाहित करें।
- दान: इस दिन दान करना बहुत शुभ माना जाता है। वस्त्र, गुड़, तिल, अनाज और लाल या नारंगी रंग की वस्तुएं दान करें। मिट्टी के एक बर्तन में गुड़, घी और तिल का चूर्ण भरकर उसे लाल कपड़े से ढककर किसी ब्राह्मण को दान करें।
- गुरु का सम्मान: अपने गुरु को वस्त्र, तिल, स्वर्ण, गाय और दक्षिणा दें। यदि कोई गुरु न हो, तो ये वस्तुएं गरीब ब्राह्मण को दान की जा सकती हैं।
- सूर्य मंत्रों का जाप: इस दिन "ओम घृणि सूर्याय नमः" या "ओम सूर्याय नमः" जैसे सूर्य मंत्रों का जाप करें।
- सात्विक भोजन: इस दिन सात्विक भोजन ही ग्रहण करें। मांस-मदिरा का सेवन न करें।
- ब्रह्मचर्य का पालन: इस दिन पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- पवित्र नदियों में स्नान: इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने का विशेष महत्व है। यदि संभव न हो तो घर पर ही गंगाजल डालकर स्नान करें।
- दीपदान: इस दिन सूर्य नारायण के नाम से दीपदान भी करना चाहिए।
अचला सप्तमी पर क्या करें और क्या न करें
अचला सप्तमी के दिन कुछ विशेष नियमों का पालन करना चाहिए:
क्या करें:
- प्रातः सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें।
- सूर्य नारायण को अर्घ्य दें।
- भगवान सूर्य नारायण की पूजा करें।
- उपवास रखें और नमक और तेल से परहेज करें।
- दान करें।
- सूर्य नारायण मंत्रों का जाप करें।
- पवित्र नदियों में स्नान करें।
- सूर्य नारायण के नाम से दीपदान करें।
- लाल रंग के कपड़े पहनें।
- ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन कराएं।
- गुरु को अचला (गले में पहनने का वस्त्र) तिल, गुड़, सोना, गाय और दक्षिणा दें।
- लाल गाय को गुड़ खिलाएं।
क्या न करें:
- नमक और तेल का सेवन न करें।
- मांसाहारी भोजन और शराब से बचें।
- काले कपड़े न पहनें।
- ब्रह्मचर्य का पालन करें।
अचला सप्तमी का महत्व: पौराणिक कथाएँ
अचला सप्तमी से संबंधित कई पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं:
वेश्या की मुक्ति: भविष्य पुराण के अनुसार, एक वेश्या ने कभी कोई दान नहीं किया था। जब वह बूढ़ी हो गई, तो उसने महर्षि वशिष्ठ से अपनी मुक्ति का उपाय पूछा। महर्षि वशिष्ठ ने उसे माघ मास की सप्तमी को सूर्य नारायण की आराधना और दान करने की सलाह दी। ऐसा करने से उस वेश्या को मृत्यु के बाद स्वर्ग में स्थान प्राप्त हुआ।
शाम्ब की कथा: एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण के पुत्र शाम्ब को अपनी शारीरिक शक्ति पर घमंड हो गया था। एक बार जब ऋषि दुर्वासा भगवान कृष्ण से मिलने आए, तो शाम्ब ने उनके दुर्बल शरीर का अपमान किया। इससे क्रोधित होकर ऋषि दुर्वासा ने शाम्ब को कुष्ठ रोग का श्राप दे दिया। तब भगवान कृष्ण ने शाम्ब को सूर्य नारायण की उपासना करने को कहा, जिसके बाद उसे कुष्ठ रोग से मुक्ति मिली।
अचला सप्तमी के लाभ
अचला सप्तमी का व्रत रखने और सूर्य नारायण की पूजा करने से कई प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं:
- रोगों से मुक्ति: यह व्रत रोगों से मुक्ति दिलाता है और उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करता है।
- धन और समृद्धि: यह व्रत धन और समृद्धि प्रदान करता है।
- पापों से मुक्ति: यह व्रत सात जन्मों के पापों से मुक्ति दिलाता है।
- यश और कीर्ति में वृद्धि: इस व्रत को करने से यश और कीर्ति में वृद्धि होती है।
- संतान की प्राप्ति: जो लोग संतान की कामना रखते हैं, उन्हें यह व्रत अवश्य करना चाहिए।
- आत्मविश्वास में वृद्धि: इस व्रत को करने से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
- सभी मनोकामनाएं पूर्ण होना: इस व्रत को करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
- सफलता: इस व्रत को करने से जीवन में सफलता और सम्मान की प्राप्ति होती है।
- मानसिक शांति: यह व्रत मानसिक शांति और सकारात्मकता लाता है।
- सूर्य नारायण की कृपा: इस व्रत को करने से सूर्य नारायण की कृपा बनी रहती है।
अचला सप्तमी पर दान का महत्व
अचला सप्तमी के दिन दान का विशेष महत्व है:
- चावल: आर्थिक समृद्धि और सुख-शांति के लिए चावल का दान करें।
- वस्त्र: दरिद्रता को समाप्त करने के लिए वस्त्र दान करें।
- तिल: पितृ दोष से छुटकारा दिलाने और ग्रह दोषों को शांत करने के लिए तिल का दान करें।
- आटा: अन्न के अभाव से बचने और समृद्धि लाने के लिए आटा का दान करें।
- नमक: इस दिन नमक का दान करना भी बहुत शुभ माना जाता है।
- गुड़: इस दिन गुड़ का दान करना भी शुभ है।
अचला सप्तमी से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न 1: अचला सप्तमी क्या है?
उत्तर: अचला सप्तमी माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है। इसे रथ सप्तमी, सूर्य नारायण जयंती और आरोग्य सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन सूर्य नारायण की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
प्रश्न 2: अचला सप्तमी 2025 में कब है?
उत्तर: अचला सप्तमी 2025 में 4 फरवरी, मंगलवार को मनाई जाएगी।
प्रश्न 3: अचला सप्तमी पर स्नान और पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है?
उत्तर:
- सूर्योदय: 07:08 बजे
- स्नान का शुभ मुहूर्त: 05:23 से 07:08 (1 घंटा 45 मिनट)
प्रश्न 4: अचला सप्तमी का क्या महत्व है?
उत्तर: यह दिन सूर्य नारायण को समर्पित है।
- इस दिन सूर्य नारायण की पूजा करने से रोग और पापों से मुक्ति मिलती है।
- यह दिन दान-पुण्य के लिए विशेष शुभ माना जाता है।
- व्रत और पूजा से सौभाग्य, स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
- पवित्र नदियों में स्नान करने से जन्म-जन्मांतर के पापों का नाश होता है।
प्रश्न 5: अचला सप्तमी पर क्या करना चाहिए?
उत्तर:
- सूर्योदय से पहले पवित्र नदी में स्नान करें या घर पर गंगाजल डालकर स्नान करें।
- सूर्य नारायण को अर्घ्य दें और दीपक जलाएं।
- आदित्य हृदय स्तोत्र, गजेंद्र मोक्ष और सूर्य नारायण मंत्रों का पाठ करें।
- लाल फूल, धूप, कपूर और जल से सूर्य नारायण की पूजा करें।
- तिल, गुड़, लाल वस्त्र, अनाज और नमक का दान करें।
- ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
प्रश्न 6: अचला सप्तमी पर क्या नहीं करना चाहिए?
उत्तर:
- नमक का सेवन न करें, बल्कि नमक का दान करें।
- मांस, मदिरा और तामसिक भोजन का त्याग करें।
- काले कपड़े न पहनें।
- तेल से बनी चीजों का सेवन न करें।
प्रश्न 7: अचला सप्तमी के व्रत में क्या खा सकते हैं?
उत्तर:
- बिना नमक का भोजन करें।
- फलाहार और मीठे व्यंजन ग्रहण करें।
प्रश्न 8: अचला सप्तमी के क्या लाभ हैं?
उत्तर:
- सभी प्रकार के रोग और दोषों से मुक्ति मिलती है।
- धन, सुख-समृद्धि और उत्तम संतान की प्राप्ति होती है।
- मान-सम्मान और यश में वृद्धि होती है।
- सकारात्मक ऊर्जा और सफलता प्राप्त होती है।
- मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
- यह सभी मान्यताएँ धार्मिक ग्रंथों और परंपराओं पर आधारित हैं।
निष्कर्ष
अचला सप्तमी एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो सूर्य नारायण को समर्पित है। यह त्योहार न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि स्वास्थ्य, समृद्धि और आध्यात्मिक उत्थान के लिए भी महत्वपूर्ण है। इस दिन व्रत रखना, सूर्य नारायण की पूजा करना और दान करना बहुत शुभ माना जाता है। यदि आप इस त्योहार को पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाते हैं, तो आप सूर्य नारायण की कृपा अवश्य प्राप्त करेंगे।
यह ब्लॉग पोस्ट विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी पर आधारित है। हालाँकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ये सभी जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है, और इन्हें वैज्ञानिक रूप से सिद्ध नहीं किया जा सकता है।
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